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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
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<Poem>
सूरज-चांद की गुड़कती गेंदों पर
नहीं रीझूंगा मैं
जानना चाहता हूँ मैं
कि शेषनाग के फन पर टिकी हुई है
या किसी बैल के सींगों पर
यह धरती !

जानना चाहता हूँ मैं
कि मेरी जड़ें ज़मीन में है
या आकाश में
किसी डोर से
बंधा हुआ हूँ मैं ।

जानना चाहता हूँ मैं
मैं वन-वन भटकूंगा
या पंख लगा कर उड़ूंगा
आकाश में
किसी अन्य की आँख से ।

जानना चाहता हूँ मैं
किसी बैया राजा की
टांगों पर है
या किसी कृष्ण की अंगुली पर
यह आकाश ।
बिरखा-बादली या इन्द्रधनुष से
नहीं रीझूंगा मैं
जानना चाहता हूँ मैं ।

'''अनुवाद : मोहन आलोक
</poem>