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हर जी का हयात है / मीर तक़ी 'मीर'
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|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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हर जी हयात का, है सबब जो हयात का
निकले है जी उसी के लिए, कायनात का
गंगाराम
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