भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर जी का हयात है / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
हर जी हयात का, है सबब जो हयात का
निकले है जी उसी के लिए, कायनात का
बिखरे हैं जुल्फ, उस रूख-ए-आलम फ़रोज पर
वर्न:, बनाव होवे न दिन और रात का
उसके फ़रोग-ए-हुस्न से, झमके है सब में नूर
शम्म-ए-हरम हो या कि दिया सोमनात का
क्या मीर तुझ को नाम: सियाही की फ़िक्र है
ख़त्म-ए-रूसुल सा शख्स है, जामिन नजात का