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भ्रम / सुधा ओम ढींगरा

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{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
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<poem>
शंकर को ढूंढने चले
हनुमान मिल गए;
क्या-क्या बदल के रूप-
अनजान मिल गए.

एक दूसरे से पहले
दर्शन की होड़ में;
अनगिनत लोग रौंदते-
इन्सान मिल गए.

माथे लगा के टीका
भक्तों की भीड़ में;
भक्ति की शिक्षा देते-
शैतान मिल गए.

अपने ही अंतर्मन तक
जिसने कभी भी देखा;
दूर दिल में हँसते हुए-
नादान मिल गए.

तोड़ा था पुजारी ने
मन्दिर के भरम को;
जब सिक्के लिए हाथ में-
बेईमान मिल गए.

कुछ रिसते झोंपड़ों में
जब झाँक कर देखा;
मानुषी भेस में स्वयं-
भगवान मिल गए.

अपने को समझतें हैं
जो ईश्वर से बड़कर;
संसार को भी कैसे-कैसे-
विद्वान् मिल गए.

किस पर करे विश्वास
आशंकित सी सुधा;
देवता के रूप में जब-
हैवान मिल गए.
</poem>