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{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
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इसी भीड़ में सम्भव है प्रेम
इसी तुमुल कोलाहल में
जब सूरज तप रहा है आसमान में
जींस और टी-शर्ट पहने वह युवती
बाइक पर कसकर थामे है
युवक चालक की देह

इसी भीड़ में
सम्भव है प्रेम !
</poem>
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