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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल,
 
कह फूल-फूल, सह फूल-फूल।
 
हरि को ही-तल में बन्द किये,
 
केहरि से कह नख हूल-हूल।
 
 
कागों का सुन कर्त्तव्य-राग,
 
कोकिल-काकलि को भूल-भूल।
 
सुरपुर ठुकरा, आराध्य कहे,
 
तो चल रौरव के कूल-कूल।
 
 
भूखंड बिछा, आकाश ओढ़,
 
नयनोदक ले, मोदक प्रहार,
 
ब्रह्यांड हथेली पर उछाल,
 
अपने जीवन-धन को निहार।
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