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बलि-पन्थी से / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल,
कह फूल-फूल, सह फूल-फूल।
हरि को ही-तल में बन्द किये,
केहरि से कह नख हूल-हूल।
कागों का सुन कर्त्तव्य-राग,
कोकिल-काकलि को भूल-भूल।
सुरपुर ठुकरा, आराध्य कहे,
तो चल रौरव के कूल-कूल।
भूखंड बिछा, आकाश ओढ़,
नयनोदक ले, मोदक प्रहार,
ब्रह्यांड हथेली पर उछाल,
अपने जीवन-धन को निहार।