{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>ख़बर वहां के पहाड़ों से रोज़ आती हैपड़ोसी गोली से अपनों की जान जाती है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~वो कैसे लोग हैं, मरने से जो नहीं डरतेज़मीन छोडने से शान पे बन आती है
ख़बर वहां के पहाड़ों बमों और गोलियों से रोज़ आती है<br>नाम जितने भी हैं जुडे़पड़ोसी गोली से अपनों अब उनके नाम की जान जाती पहचान भी डराती है<br><br>
वो कैसे लोग भी हैं, मरने से जो नहीं डरते<br>जिन्हें दोस्तों ने लूटा हैज़मीन छोडने से शान पे बन आती हो दिन या रात, याद गांव की सताती है<br><br>
बमों और गोलियों से नाम जितने भी हैं जुडे़<br>अब उनके नाम की पहचान भी डराती है<br><br> वो लोग भी हैं जिन्हें दोस्तों ने लूटा है<br>हो दिन या रात, याद गांव की सताती है<br><br> वतन हमारा है अफ़सोस हम मुहाजिर हैं<br>बर्फ़ भी आज हमारा बदन जलाती है<br><br/poem>