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आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे / ग़ालिब
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20:04, 17 मई 2009
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवेदा कहें जिसे<br><br>
फूँका है किसने
गोशे
गोश-ए-
मुहब्बत में ऐ ख़ुदा<br>
अफ़सून-ए-इन्तज़ार तमन्ना कहें जिसे<br><br>
सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से
डलिये
डालिये
<br>
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक के सहरा कहें जिसे<br><br>
हेमंत जोशी
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