आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे / ग़ालिब
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ-सा कहें जिसे
हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवैदा<ref>दिल का दाग़</ref> कहें जिसे
फूँका है किसने गोश-ए-मुहब्बत<ref>प्रेमी का कान</ref> में ऐ ख़ुदा
अफ़सून-ए-इन्तज़ार<ref>प्रतिज्ञा का जादू</ref> तमन्ना कहें जिसे
सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी<ref>अकेले रहने की पीड़ा की अधिकता</ref> से डालिये
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक<ref>एक मुठ्ठी मिट्टी</ref> कि सहरा<ref>रेगिस्तान</ref> कहें जिसे
है चश्म-ए-तर<ref>आँख</ref> में हसरत-ए-दीदार से निहां<ref>छुपा हुआ</ref>
शौक़-ए-अ़ना-गुसेख़्ता<ref>बेलगाम शौक़</ref> दरिया कहें जिसे
दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल हाये-ऐश<ref>ऐश्वर्य के फूलों को खिलने के लिए</ref> को
सुबह-ए-बहार पम्बा-ए-मीना<ref>शराब की सुराही पर रखा हुआ रुई के फाहा</ref> कहें जिसे
"गा़लिब" बुरा न मान जो वाइज़<ref>उपदेशक</ref> बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे