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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
}}
<poem>

शायद किसी दिन
मैं फिर आऊंगा
शायद किसी दिन
तुम यों ही कहीं मिल जाओगी

बहुत बदल गये चेहरे भी एक दूसरे के
हम पहचान लेंगे

शायद शिनाख़्त न कर पायें
आपसी दुखों की
पर अब से थोड़ा समझदार होंगे
और दे सकेंगे दूसरे को
प्रेम और भरोसा ।
</poem>
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