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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''उत्तरकांड'''


.......और तुम बाँधोगे, चिड़ीमार!
किसी गोरैया को
अपने जाल में,
फैलाओगे
अपने प्यार का दाना-दुनका.....
......और, तुम!
रचोगे, फिर षड्यंत्र।
अपनी आँखों से सम्प्रेषित करोगे
प्यार की, आत्मीयता की
ढेरों अभिव्यक्तियाँ।
तुम्हारे प्यार की गंध सूँघने
तुम्हारे प्यार की आँच में
अपने घाव सेंकने
फिर कोई आ जलेगा।
::अपनी राजशाही में शांति, सुख के लिए
::तुम
::फिर दोगे
::प्रेम को निर्वासन
::और तुम फिर सुनाओगे
::अपनी दिग्विजय की कहानियाँ
::अपने अश्वमेध की पूर्णाहुति के चारण।
::ध्वस्त हुई सत्ताओं के खंडहर पर
::रचोगे एक और नव-साम्राज्य की नींव,
::गाएँगे फिर से तुम्हारे भाट
::तुम्हारी संस्तुति
::........और
::फिर से लेगी एक नारी
::भूमि-समाधि....
::हो जाएगी मिट्टी.......।
तुम तब भी रहोगे
मर्यादित
पुरुष
उत्तम!!
</poem>