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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=यगाना चंगेज़ी |संग्रह= }}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>खुदी का नशा चढ़ा आप में रहा न गया। 
ख़ुदा बने थे ‘यगाना’ मगर बना न गया॥
 
गुनाहे-ज़िंदादिली कहिये या दिल-आज़ारी<ref>सताना</ref>।
 
किसी पै हँस लिये इतना कि फिर हँसा न गया॥
 
समझते क्या थे, मगर सुनते थे तर्रानाये-दर्द।
 
समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया॥
 
पुकारता रहा किस-किसको डूबनेवाला।
 
ख़ुदा थे इतने, मग्र कोई आड़े आ न गया॥
</poem>
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