Changes

नया पृष्ठ: <poem> फूटी थी निस्सार नदी पतली सी इक धार नदी छोड- अपना घर बार नदी मानो ...
<poem>
फूटी थी निस्सार नदी
पतली सी इक धार नदी

छोड- अपना घर बार नदी
मानो भूत सवार नदी

कहती क्या मछली इसको
जिसकी थी सरकार नदी

उफने भी, पुल के नीचे
बहती आखिरकार नदी

बाँधोंगे तब निकलेगी
बिजली बन घर-द्वार नदी

हिम बादल बारिश कोहरा
सबका असली सार नदी

तोड़ेगी तटबंधों को
तब खोदेगी घार नदी

होना बादल फिर सागर से
प्रेम करे बेकार नदी
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits