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नया पृष्ठ: <math>{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | संग्रह=शब्दों के संपुट मे...
<math>{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
| संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत
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<poem>वास्तव में
हम व्यर्थ ही व्याकुल हो उठते हैं,
औरों के लिए,
यह जानते हुए भी कि,

सबके अपने-अपने दायरे हैं,
और्सब के अपने-अपने घाट,

किंतु फिर भीम
(पता नहीं क्यों)

हर बाट छोड़ कर
हम उसी घाट पर,
जा सकते हैं बार-बार
जहां क्षण भर की तृप्ति के बदले
अनंतकाल के लिए
सौगात में मिलती है हमें
सैंकड़ों मन धधकती हुई आग।
</poem>
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