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22:56, 21 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !
शब ने मदहोशी का आलम बुना
आसमां नीली चादर बिछाने लगा
मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने
चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !
हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में
प्रीत की कब्रों में सजते रहे
कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !</poem>