भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़्म, रात जुगनुओं ने इश्क का जाम भरा..... / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !
शब ने मदहोशी का आलम बुना
आसमां नीली चादर बिछाने लगा
मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने
चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !
हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में
प्रीत की कब्रों में सजते रहे
कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !