Changes

|रचनाकार=गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
 
सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्‍किल मश्किल वरना साहिब
सम्भल कर तुम दोष लगाना
सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों क्यूँ ढोलों का बजना साहिब
कितनी कयनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना ढलना साहिब
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,466
edits