सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी

सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्किल वरना साहिब

सम्भल कर इल्जाम लगाना
उसने खद्‍दर पहना साहिब

तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब

दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब

पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब

सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब

कायनात सारी ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब



(द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009)

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.