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13:16, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
<poem>औरतों में घिरी औरत
मुझसे नज़र मिलाती है
मुझसे नज़र चुराती है
औपचारिकता ओढ़कर
अभिवादन करती है
मेरी बीवी का हालचाल पूछती है
मुझे बच्चों के परीक्षा-परिणाम पर
बधाई देती है
और
बातचीत में
नवोदित गायक की ग़ज़लों के कैसेट पर
फिदा होती है
गर्म चाय की चुस्की लेते हुए
अपने होंठ बचाती है
और प्रशंसा करती है
हाल ही में सम्पन्न हुए
सांस्कृतिक समारोह की
कभी किसी चाय पार्टी में
काजू उठाते हुए
मिल जाती है
हमारी घड़ियां
और खिल उठती हैं
उसकी प्रौढ़ आंखों में
किशोरी कलियां।
मगर चाय पार्टी के बाद
औरतों में घिरी औरत
औ' आदमियों में गिरा आदमी
अपना-अपना व्यक्तितत्व उठाते हैं
और अपने-अपने घर
लौट जाते हैं
</poem>