भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरतों में घिरी औरत / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
औरतों में घिरी औरत
मुझसे नज़र मिलाती है
मुझसे नज़र चुराती है
औपचारिकता ओढ़कर
अभिवादन करती है
मेरी बीवी का हालचाल पूछती है
मुझे बच्चों के परीक्षा-परिणाम पर
बधाई देती है
और
बातचीत में
नवोदित गायक की ग़ज़लों के कैसेट पर
फिदा होती है
गर्म चाय की चुस्की लेते हुए
अपने होंठ बचाती है
और प्रशंसा करती है
हाल ही में सम्पन्न हुए
सांस्कृतिक समारोह की
कभी किसी चाय पार्टी में
काजू उठाते हुए
मिल जाती है
हमारी घड़ियां
और खिल उठती हैं
उसकी प्रौढ़ आंखों में
किशोरी कलियां।
मगर चाय पार्टी के बाद
औरतों में घिरी औरत
औ' आदमियों में गिरा आदमी
अपना-अपना व्यक्तितत्व उठाते हैं
और अपने-अपने घर
लौट जाते हैं