1,157 bytes added,
14:29, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>
ज़मीन सपनों की, सारा जहान सपनों का
बना रहा हूं हवा में मकान सपनों का ।
तुम्हारी आंख के आंसू बता रहे हैं हमें
हुआ है क़त्ल बहुत बेज़ुंबां सपनों का ।
तुम अपने प्यार का सूरज भी सौंपते जाओ
बहुत खुला है मेरा आसमान सपनों का ।
हमारे जिस्म को भट्ठी में झोंकने वालों
नहीं है, कोई नहीं हुक्मरान सपनों का ।
तुम्हें भी वक़्त फिर सपनों में दफ़्न कर देगा
अगर वसूल करोगे लगान सपनों का ।</poem>