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दीप / महादेवी वर्मा

5 bytes added, 14:37, 22 सितम्बर 2009
वियोगी मेरे बुझते दीप ?
अनोखे से नेही के त्याग!निराले पीड़ा के संसार!कहाँ होते हो अंतर्ध्यानअन्तर्धानलुटा अपना सोने सा प्यार?कभी आएगा आयेगा ध्यान अतीत-तुम्हें क्या निर्माणोन्मुख निर्वाणोन्मुख दीप?
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