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आस्था-4 / राजीव रंजन प्रसाद
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'''आस्था -४'''
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<
br /
poem
> पागल
हूं
हूँ
तो पत्थर मारो
<br />
दीवाना हूँ हँस लो
मुझपर<br />
मुझ पर
मुझे तुम्हारी नादानी से
<br />
और
आस्थाये
आस्थाएँ
गढनी हैं...<
br
/
poem
>
अनिल जनविजय
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