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मैंने देखा था, कलिका के / माखनलाल चतुर्वेदी
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04:25, 7 अक्टूबर 2009
किन्तु एक मैं देख न पाई
फूलों में बँध जाना;
और हॄदय की
मूर
मूरत
का यों
जीवित चित्र बनाना!
</poem>
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