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मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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20:20, 10 अक्टूबर 2009
मुक्त अम्बर गया, अब हो
:::जलधि-जीवन को!"
द्सकल
:सकल
साभिप्राय;
समझ पाया था नहीं मैं,
:::थी तभी यह हाय!
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