गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दीप जलता रहा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
14 bytes added
,
04:49, 17 अक्टूबर 2009
जिस तरह आग
::
वन में लगी हुई है,--
एकता में सरस
::
भास है--दुई है,--
सत्य में भ्रम हुआ है,--
::
छुईमुई है,
मान बढ़ता रहा,
::
उम्र ढलती रही।
समय की बाट पर,
::
हाट जैसे लगी,--
मोल चलता रहा,
::
झोल जैसे दगी,--
पलक दल रुक गये,
::
आँख जैसे लगी,--
काल खुलता रहा
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits