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घंटी / कुंवर नारायण
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10:07, 4 नवम्बर 2009
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
:::और करवट बदल कर सो गया
अलार्म की
घंती
घंटी
बजी
मैंने कहा- मैं नहीं हूँ
:::और करवट बदल कर सो गया
मौत की घंटी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा-
मैं हूँ
-
...
मैं हूँ
-
...
मैं हूँ
..
:::मौत ने कहा-
:::करवट बदल कर सो जाओ।
</poem>
अनिल जनविजय
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