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कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण
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10:18, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार = कुंवर नारायण
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<poem>
तुम अभी आग ही आग
मैं बुझता चिराग
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
पानी पर लिखता एक छंद
बनाता एक आभा-चित्र
और डूब जाता अतल में
एक सीपी में बंद
कभी पाना मुझे
सदियों बाद
दो गोलार्धों के बीच
झूमते एक मोती में ।
</poem>
अनिल जनविजय
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