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शुरूआत / इला प्रसाद

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|रचनाकार=इला प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जब भी सुबह शुरूआत हुई  
अँधेरे में हुई
 
अँधेरे से उजाले तक पहुँची
 
फिर वापस अँधेरे में लौटकर
 
गुम हो गई
 
फिर थके-हारों पैरों को सहलाया
 
कतरा-कतरा साहस जुटाया
 
कदम बढ़ाए.....
 
कि एक और शुरूआत तो
 
करनी ही होगी
 
क्या पता इस बार
 
मेरे हिस्से का सूरज
 
मेरी पकड़ में आ जाय
 
अँधेरे का यह सफ़र
 
निर्णायक हो जाय
 
</poem>
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