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शुरूआत / इला प्रसाद

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जब भी सुबह शुरूआत हुई
अँधेरे में हुई
अँधेरे से उजाले तक पहुँची
फिर वापस अँधेरे में लौटकर
गुम हो गई
फिर थके-हारों पैरों को सहलाया
कतरा-कतरा साहस जुटाया
कदम बढ़ाए.....
कि एक और शुरूआत तो
करनी ही होगी
क्या पता इस बार
मेरे हिस्से का सूरज
मेरी पकड़ में आ जाय
अँधेरे का यह सफ़र
निर्णायक हो जाय