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09:50, 16 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमीर खुसरो
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{{KKCatKavita}}<poem>
एक नार कुँए में रहे,
वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे,
फिर जीवन की आस न राखे।।
'''उत्तर – तलवार'''
एक जानवर रंग रंगीला,
बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके,
बिन बताए सोवे।।
'''उत्तर - मोर।'''
चाम मांस वाके नहीं नेक,
हाड़ मास में वाके छेद।
मोहि अचंभो आवत ऐसे,
वामे जीव बसत है कैसे।।
'''उत्तर - पिंजड़ा।'''
स्याम बरन की है एक नारी,
माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले।।
'''उत्तर - भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं।)'''
एक गुनी ने यह गुन कीना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल।
'''उत्तर - पान।'''
एक थाल मोतियों से भरा,
सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे,
मोती उससे एक न गिरे।
'''उत्तर – आसमान'''
</poem>