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02:29, 26 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>समीना ने चलना सीखा
कब की बात हो गई
समीना ने बोलना सीखा
कब की बात हो गई
समीना ने पढ़ना सीखा
कब की बात हो गई
अब समीना सरकेगी सड़क पर
साइकिल पर बैठ
दो ओर लगे सुनील शबनम
बीच बैठी समीना
पहले तो डर का सरगम
फिर धीरे धीरे आई हिम्मत
थामा स्टीयरिंग कसकर
फिर दो चार बार गिरकर
जब लगी चोट जमकर
समीना थोड़ी शर्माई
दो एक बार घंटी भी आजमाई
क्रींग क्रींग की धूम मचाई
देर सबेर पेडल घुमाया ठीक ठाक
सबने देखी समीना की साइकिल की धाक
समीना ने साइकिल चलाना सीखा
कब की बात हो गई।</poem>