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गंगा की लहर / शांति सुमन

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एक साथ
गंगा की लगर फिर गिनें

सीढ़ियों पर बैठ धूपबाती जलाएं
पानी पर दीप की कतार सजाएं

मंदिर-ध्वनि हाथों में जल भर सुनें

डाली में बहते चम्पे-से मन को
बांधे उदास नावों में क्षण को

चाहों के सूत समय को पकड़ बुनें

उंगली में भरें रोशनी की लकीरें
आओ, अंजुरी से जल-चम्पा चीरें

हरे-भरे
दिन को हम उमर भर गुनें
<poem>

(१ जून, २००० को रचित)
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