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अपनी खिड़की से / अशोक वाजपेयी

No change in size, 19:40, 7 फ़रवरी 2010
कि सामने के वृक्षों पर
हरियाली और धूप हो सके;
कि आकाश अपनी धूमिलता छॊड़करछोड़कर
नीला निरभ्र हो सके;
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