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11:49, 23 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै,
::ऊधौ उए वियोग के बचन बतरावौ ना ।
कहै रतनाकर दया करि दरस दीन्यौ,
::दुख दरिबै कौं, तोपै अधिक बढ़ावौ ना ॥
टूक-टूक ह्वै है मन-मुकुर हमारौ हाय,
::चूकि हूँ कठोर-नैन पाहन चलावौ ना ।
एक मनमोहन तौ बसिकै उजारयौ मोहिं,
::हिय मैं अनेक मनमोहन बसावौ ना ॥40॥
</poem>