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आए हो सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै,
ऊधौ उए वियोग के बचन बतरावौ ना ।
कहै रतनाकर दया करि दरस दीन्यौ,
दुख दरिबै कौं, तोपै अधिक बढ़ावौ ना ॥
टूक-टूक ह्वै है मन-मुकुर हमारौ हाय,
चूकि हूँ कठोर-नैन पाहन चलावौ ना ।
एक मनमोहन तौ बसिकै उजारयौ मोहिं,
हिय मैं अनेक मनमोहन बसावौ ना ॥40॥