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ख़ामोशी एक ताबूत बनाती है / विद्याभूषण
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07:04, 15 मार्च 2010
विषण्ण रहता हूँ इन दिनों।
मीना बाज़ार में
कटी जेब लेकरभटकने का दर्द
मुझे चीरता है।
मैं जादूगर की पेटी में बंद
गुड्डे की तरह
आरों से बार-बार चिर कर भी
साबुत बच जाता हूँ।
मुझे बाहरी चोट नहीं पहुँचती,
मगर भीतर घाव गहरा है।
</poem>
अनिल जनविजय
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