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05:26, 3 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= सतपाल 'ख़याल'
|संग्रह=
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
क्या है उस पार, कोई शख़्स ये समझा न सका
क्या जगह है जो गया, लौट के भी आ न सका
मैं तो आदी हूँ विरासत में मिले ग़म मुझको
जो मेरे साथ रहा वो भी खुशी पा न सका
मैं सफ़र में हूँ यही रेत मुकद्दर मेरा
भटका दरिया हूँ समंदर का पता पा न सका
टूटे पत्तों को शजर बनके निहारा मैनें
जो गए उनको मनाकर भी कभी ला न सका
किससे मिलना है गले, हाथ मिलाना किससे
फ़ासला किससे रखूँ कितना समझ आ न सका
</poem>