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जो मेरे साथ रहा वो भी खुशी पा न सका

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 क्या है उस पार, कोई शख़्स ये समझा न सका
क्या जगह है जो गया, लौट के भी आ न सका

मैं तो आदी हूँ विरासत में मिले ग़म मुझको
जो मेरे साथ रहा वो भी खुशी पा न सका

मैं सफ़र में हूँ यही रेत मुकद्दर मेरा
भटका दरिया हूँ समंदर का पता पा न सका

टूटे पत्तों को शजर बनके निहारा मैनें
जो गए उनको मनाकर भी कभी ला न सका

किससे मिलना है गले, हाथ मिलाना किससे
फ़ासला किससे रखूँ कितना समझ आ न सका