{{KKRachna
|रचनाकार=नन्दल हितैषी
|संग्रह=बेहतर आदमी के लिए / नन्दल हितैषी
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सिगनल की लाल आँख
अधिक डरावनी हो गई
गुजर गई है ’राजधानी’
फुसफुसाने लगे थे / खिड़की के चौखट तक.तक।
रेडियो ने मल्लाहों को दी है
वैधानिक चेतावनी
टूट चुके थे
और..... पेण्डुलम को
लकवा मार गया.गया।
</poem>