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07:22, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त
नहीं, पर, थी वह भेंट, न दान,
अमृत भी मुझको अस्वीकार
अगर कुंठित हो मेरा मान;
:::दृगों में मोती की निधि खोल
:::चुकाया था मधुकण का मोल,
:::हलाहल यदि आया है यदि पास
:::हृदय का लोहू दूँगा तोल!