Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} उसने अपना सिद्धान्‍त न बदला …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


उसने अपना सिद्धान्‍त न बदला मात्र लेश,

पलटा शासन, कट गई क़ौम, बँट गया देश,

:::वह एक शिला थी निष्‍ठा की ऐसी अविकल,

:::::सातों सागर

::::::का बल जिसको

:::::::दहला न सका।


छा गया क्षितिज तक अंधक-अंधर-अंधकार,

नक्षत्र, चाँद, सूरज ने भी ली मान हार,

:::वह दीपशिखा थी एक ऊर्ध्‍व ऐसी अविचल,

:::::उंचास पवन

का वेग जिसे

:::::::बिठला न सका।


पापों की ऐसी चली धार दुर्दम, दुर्धर,

हो गए मलिन निर्मल से निर्मल नद-निर्झर,

:::वह शुद्ध छीर का ऐसा था सुस्थिर सीकर,

:::::जिसको काँजी

::::::का सिंधु कभी

:::::::बिलगा न सका।
195
edits