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उसके अपना सिद्धान्त न बदला मात्र लेश / हरिवंशराय बच्चन
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उसने अपना सिद्धान्त न बदला मात्र लेश,
पलटा शासन, कट गई क़ौम, बँट गया देश,
- वह एक शिला थी निष्ठा की ऐसी अविकल,
- सातों सागर
- का बल जिसको
- दहला न सका।
छा गया क्षितिज तक अंधक-अंधर-अंधकार,
नक्षत्र, चाँद, सूरज ने भी ली मान हार,
- वह दीपशिखा थी एक ऊर्ध्व ऐसी अविचल,
- उंचास पवन
- का वेग जिसे
- बिठला न सका।
पापों की ऐसी चली धार दुर्दम, दुर्धर,
हो गए मलिन निर्मल से निर्मल नद-निर्झर,
- वह शुद्ध छीर का ऐसा था सुस्थिर सीकर,
- जिसको काँजी
- का सिंधु कभी
- बिलगा न सका।