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16:13, 1 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं
जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?
:::मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
:::::बापू ने सबको
::::::गिन-गिनकर
:::::::अवगाह लिया।
बापू की छाती की हर साँस तपस्या थी
आती-जाती हल करती एक समस्या थी,
:::पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
:::::बापू ने जीवन
::::::के क्षण-क्षण को
:::::::थाह लिया।
किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?
किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?
किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?
:::बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
:::जीने की किमत कर वसूल पाई-पाई,
:::::मरने का भी
::::::बापू ने मूल्य
:::::::उगाह लिया।