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न हसरत हो कोई न सपना ऐ दुनिया / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
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13:11, 5 जून 2010
है आसान हद से गुज़रना ऐ दुनिया
सहारा किसी का
सहारा
है
तब तक
सहारा
कि जब तक न चाहो परखना ऐ दुनिया
ये सूरत
बहुत ही
`मधुर'-सी
बिगड़ भी है सकती
नहीं हद से ज़्यादा सँवरना ऐ दुनिया
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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