न हसरत हो कोई न सपना ऐ दुनिया / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
न हसरत हो कोई न सपना ऐ दुनिया
तो क्या फिर पराया या अपना ऐ दुनिया
कभी आँख से इक भी आँसू न टपका
मेरे दिल से सीखो तड़पना ऐ दुनिया
ज़रा जोड़ ले ज़िन्दगी से वो रिश्ता
अगर कोई चाहे बिखरना ऐ दुनिया
बहुत ज़ब्त के बाद टूटे सितारा
है आसान हद से गुज़रना ऐ दुनिया
सहारा किसी का है तब तक सहारा
कि जब तक न चाहो परखना ऐ दुनिया
ये सूरत `मधुर'-सी
बिगड़ भी है सकती
नहीं हद से ज़्यादा सँवरना ऐ दुनिया