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रखो दफ्तर की बातें सिर्फ दफ्तर तक / जहीर कुरैशी
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06:59, 11 जून 2010
गई थी कल भी वो साहब के बिस्तर तक
कुएँ की
दृष्ति
हस्ती
उनको तंग लगती है
जो दुनिया देख आए हैं समन्दर तक
</poem>
Ysjabp
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