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देव पुत्र था निश्वय वह जन मोहन मोहन / सुमित्रानंदन पंत
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मानव का सौंदर्य प्रतिष्ठित कर देवोत्तर!
आत्म दान से लोक सत्य को
दे
नव जीवन
नव संस्कृति की शिला रख गया भूपर चेतन!
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