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देव पुत्र था निश्वय वह जन मोहन मोहन / सुमित्रानंदन पंत
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देव पुत्र था निश्वय वह जन मोहन मोहन,
सत्य चरण धर जो पवित्र कर गया धरा कण!
विचरण करते थे उसके सँग विविध युग वरद
राम, कृष्ण, चैतन्य, मसीहा, बुद्ध, मुहम्मद!
उसका जीवन मुक्त रहस्य कला का प्रांगण
उसका निश्छल हास्य स्वर्ग का था वातायन!
उसके उच्चादर्शों से दीपित अब जन मन,
उसका जीवन स्वप्न राष्ट्र का बना जागरण!
विश्व सभ्यता की कृत्रिमता से हो पीड़ित
वह जीवन सारल्य कर गया जन में जागृत!
यांत्रिकता के विषम भार से जर्जर भू पर
मानव का सौंदर्य प्रतिष्ठित कर देवोत्तर!
आत्म दान से लोक सत्य को दे नव जीवन
नव संस्कृति की शिला रख गया भूपर चेतन!